Friday, November 7, 2008

आज हसने खिलने को जी चाहता हे,
पालो को सवारती हु में,
आज मुस्कुराने को जी चाहता हे,
गौर से देखती हु में,
कही खुशीका दौर बदल ना जाए,
आज गमोसे दूर भागने को जी चाहता हे,
आज सबकी आहटोसे दूर,
अपनी आहटो में सिमट जाने को जी चाहता हे,
'आज' से दूर लम्होंकी बारातमें,
मचल जाने को जी चाहता हे,,,




1 comment:

Krishna The Universal Truth.. said...

hmm khub saras...khilne ko ji chahata hai